Wednesday, July 20, 2016

चर्चा प्लस ‪.... ‪‎कमाल अतातुर्क‬ के देश में ‪जनशक्ति‬ का कमाल ... - डॉ. ‪शरद सिंह‬



                                             
मेरा कॉलम  "चर्चा प्लस" "दैनिक सागर दिनकर" में (20. 07. 2016) .....


 

My Column Charcha Plus‬ in "Dainik Sagar Dinkar" .....
चर्चा प्लस

कमाल अतातुर्क के देश में जनशक्ति का कमाल
                                                   
                                                      - डाॅ. शरद सिंह 

जनशक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती, इस बात को एक बार फिर साबित कर दिया कमाल अतातुर्क के देश टर्की की जनता ने। जनता चाहे तो राष्ट्राध्यक्ष को सत्ता से उतार फंेक सकती है और यदि चाहे तो अपने राष्ट्राध्यक्ष की सत्ता को बचाने के लिए सेना की तोपों के सामने भी जा खड़ी हो सकती है। दुनिया भर के शासनाध्यक्षों को चाहिए कि वे जनता की इस शक्ति से सबक लेते हुए स्वहित के बजाए जनहित पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखने की आदत डाल लें। चुनावों में जनशक्ति का प्रदर्शन तो होता ही रहता है लेकिन टर्की की जनता ने अपने आप में यह अनूठा उदाहरण सामने रखा है।

जनता की शक्ति क्या है? क्या उसका दायित्व चुनावों में अपने प्रिय प्रत्याशी को विजयी बनाने के बाद समाप्त हो जाता है? लोकतंत्र की संकल्पना में जनता की शक्ति अपने विजयी प्रत्याशी के रूप में स्थापित रहती है। जब जनता को लगता है कि उसकी शक्ति कमजोर पड़ रही है अर्थात् उसके द्वारा विजयी बनाया गया प्रत्याशी उसकी आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतर रहा है तो वह नए प्रत्याशी की ओर देखने को स्वतंत्र रहती है। यही लोकतंत्र का मूल तत्व है। लोकतंत्र में सत्ता आम आदमी के हाथ में होती है। जहां तक लोकतंत्र की परिभाषा का प्रश्न है अब्राहम लिंकन की यह परिभाषा सर्वमान्य है - ‘‘लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन होता है।’’ लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है, उसकी अनुमति से शासन होता है, उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य माना जाता है। परंतु लोकतंत्र केवल एक विशिष्ट प्रकार की शासन प्रणाली ही नहीं है वरन् एक विशेष प्रकार के राजनीतिक संगठन, सामाजिक संगठन, आर्थिक व्यवस्था तथा एक नैतिक एवं मानसिक भावना का नाम भी है। लोकतंत्र जीवन का समग्र दर्शन है जिसकी व्यापक परिधि में मानव के सभी पहलू आ जाते हैं।
टर्की में सेना द्वारा तख्तापलट के प्रयास को जनता द्वारा जिस ढंग से विफल बनाया गया उसने लोकतंत्र के उस अध्याय को भी रेखांकित कर दिया जिसमें अंकित है कि लोकतंत्र की रक्षा करना स्वयं जनता का दायित्व होता है। टर्की की जनता ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि यदि जनता अपनी शक्ति से काम ले तो निशस्त्र होते हुए भी तोपों और हवाई हमलों को नाकाम कर सकती है।
 
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper

जनशक्ति का मुंहतोड़ जवाब
तुर्की की सेना के एक अंसतुष्ट धड़े की ओर से तख्तापलट की कोशिश को सरकार के वफादार सैनिकों के नाकाम करने के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने तुर्क नागरिकों ने अपने लोकतंत्र और चुनी हुई सरकार को बचाने के लिए राष्ट्रपति की अपील पर वे सड़कों पर जमा हो गए और नतीजतन विद्रोहियों को हथियार डालने पड़ा। कई घंटों की अफरातफरी और हिंसा के बाद राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन  ने इसके बारे में सूचना जारी की कि वे सकुशल हैं। इसके बाद राष्ट्रपति एर्दोगन सुबह के समय विमान से इस्तांबुल हवाईअड्डे पहुंचे, जहां सैकड़ों समर्थकों ने उनका स्वागत किया । प्रधानमंत्री बिनाली यिलदीरिम ने ने भी स्थिति के पूरी तरह नियंत्रण में होने की आधिकारिक घोषणा की।  एर्दोगन ने ट्वीट कर लोगों से आग्रह किया कि लोग सड़कों पर उतरें और तख़्तापलट की कोशिश को विफल कर दें। लोग सड़कों में हाथों में झंडा लिए हुए तख्तापलट की कोशिश को पूरी तरह नाकाम करने के लिए सड़कों पर उतर गए।  एर्दोगन ने तख्तापलट के प्रयास की निन्दा की और इसे ‘‘विश्वासघात’’ बताया । उन्होंने कहा कि वह काम कर रहे हैं और ‘‘अंत तक’’ काम करना जारी रखेंगे । उन्होंने हवाईअड्डे पर कहा, ‘‘जो भी साजिश रची जा रही है, वह देशद्रोह और विद्रोह है । उन लोगों को देशद्रोह के इस कृत्य की भारी कीमत चुकानी होगी ।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम अपने देश को उस पर कब्जे की कोशिश कर रहे लोगों के हाथों में नहीं जाने देंगे।’

आरोप प्रत्यारोप 

टर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन के आलोचकों ने उन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने तुर्की की धर्मनिरपेक्ष जड़ों को कमजोर किया है और देश को अधिनायकवाद की ओर ले जा रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति सेना के बीच अपने विरोधियों को मनाने और सेना पर काफी हद तक नियंत्रण रखने में सफल रहे थे। एर्दोगन ने तत्काल इसके लिए ‘समानांतर सरकार’ और ‘पेंसिलवानिया’ को जिम्मेदार ठहराया। उनका इशारा पेंसिलवानिया आधारित फतहुल्ला गुलेन की ओर था। गुलने उनके धुर विरोधी हैं तथा एर्दोगन ने उन पर हमेशा सत्ता से बेदखल का प्रयास करने का आरोप लगाया। परंतु राष्ट्रपति के पूर्व सहयोगी गुलेन ने इससे इंकार करते हुए कहा कि उनका तख्तापलट की इस कोशिश से कोई लेना देना नहीं है और उन पर आरोप लगाना अपमानजनक है। यिलदीरिम ने भी तख्तापलट के प्रयास के लिए अमेरिका में रह रहे तुर्क धर्मगुरू गुलेन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘‘फतहुल्ला गुलेन एक आतंकवादी संगठन का नेता है। उसके पीछे जो भी देश है वह तुर्की का मित्र नहीं है और उसने तुर्की के खिलाफ गंभीर युद्ध छेड़ रखा है।’’
टर्की में तख्ता पलट की कोशिश नाकाम रहने के बाद कई सीनियर ऑफिसर्स समेत 2,839 सैनिकों को गिरफ्तार किया गया। टर्की के प्रधानमंत्री बिनाली यिल्दिरिम ने कहा कि तख्तापलट की कोशिश को टर्की के लोकतांत्रिक इतिहास में काला धब्बा है। टर्की के मीडिया के अनुसार सेना दो वरिष्ठतम जनरलों को भी गिरफ्तार किया गया तथा लगभग 2,745 जजों को हटाया गया है, इनमें टर्की के सुप्रीम कोर्ट के जज भी शामिल हैं।
पहले भी किए गए थे प्रयास

तुर्की में सेना के किसी अधिकारी ने तख्तापलट की कोशिश की जिम्मेदारी नहीं ली है, हालांकि प्रधानमंत्री बिन अली यिलदिरीम ने दावा किया कि तख्तापलट समर्थक एक प्रमुख जनरल मारा गया है। तुर्की की सेना को उस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का रक्षक माना जाता है जिसकी स्थापना वर्ष 1923 में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने की थी।  सेना ने वर्ष 1960 के बाद से तुर्की में तीन बार तख्तापलट की कोशिश की और वर्ष 1997 में इस्लामी सरकार को बेदखल कर दिया था। फतेउल्लाह गुलेन एक प्रशिक्षित इमाम है। जो इस समय पेन्सीलवेनिया में निर्वासित जीवन जी रहा है। जून माह में पिछले महीने तुर्की सरकार का प्रतिनिधित्वत करने वाले वकीलों ने कहा कि वह गुलेन के गैरकानूनी कामों को उजाकर करना जारी रखेंगे।
जिस रात टर्की में सेना द्वारा तख्तापलट की कोशिश की गई उस रात तुर्की जलने लगा, सड़कों पर टैंक उतर गए और चारों तरफ खूनखराबा शुरु हो गया। लेकिन कुछ घंटों के कत्लेआम के बाद जनता ने तानाशाही शक्तियों को उखाड़ फेंका। लोकतंत्र को कुचलकर तख्तापलट की कोशिश करने वाले सभी विद्रोही जवानों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया है। ये सब ऐसे देश में हुआ जिसकी पहचान वहां का लोकतंत्र है अब सवाल था कि तख्तापलट की साजिश किसने रची। खबरों के मुताबिक इस बगावत के पीछे उस धर्मगुरु का हाथ था, जो अमेरिका में निर्वासित जिंदगी बिता रहा है। यद्यपि वहीं गुलेन ने इस तख्ताापलट में किसी भी भूमिका से इनकार किया है। गुलेन ने कहा कि वो तख्तापलट के षडयंत्र की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं।
कमाल अतातुर्क का कमाल

कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफा कमाल पाशा (1881-1938) को आधुनिक तुर्की का निर्माता कहा जाता है। कमाल अतातुर्क ने साम्राज्यवादी शासक सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय का पासा पलट कर टर्की में आधुनिक सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था कायम करने का जो क्रान्तिकारी कार्य किया था उसने देश की सूरत ही बदल दी थी। कमाल ने 1924 के मार्च में खिलाफत प्रथा का अन्त किया और तुर्की को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित करते हुए एक विधेयक संसद में रखा और पारित कराया। बहु-विवाह गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। इसके साथ ही पतियों से यह कहा गया कि वे अपनी पत्नियों के साथ ढोरों की तरह-व्यवहार न करके बराबरी का बर्ताव रखें। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार दिया गया। सेवाओं में घूस लेना निषिद्ध कर दिया गया और घूसखोरों को बहुत कड़ी सजाएं दी र्गइं। स्त्रियों के पहनावे से पर्दे का चलन समाप्त कर दिया गया। अरबी लिपि को हटाकर पूरे देश में रोमन लिपि की स्थापना की गयी। इसका परिणाम यह हुआ कि सारा तुर्की संगठित होकर एक हो गया और अलगाव की भावना समाप्त हो गयी। कमाल ने तुर्की सेना को अत्यन्त आधुनिक ढंग से संगठित किया। इस प्रकार तुर्क जाति कमाल पाशा के कारण आधुनिक जाति बनी। उल्लेखनीय है कि वर्तमान राष्ट्रपति एर्दोवान अपने को अतातुर्क का उत्तराधिकारी मानते हैं। उन्होंने देश को आधुनिक बनाने का फैसला किया है और पूरे तुर्की में मूल संसाधनों को बेहतर करने के प्रोजेक्ट चला रहे हैं।
जिस जनता ने मुस्तफा कमाल पाशा को टर्की का ‘‘अतातुर्क’’ अर्थात् ‘‘राष्ट्रपिता’’ माना उसी जनता ने दशकों बाद एक बार फिर दिखा दिया कि जनता की इच्छा हथियारों पर भी भारी पड़ती है। जनशक्ति से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती, इस बात को एक बार फिर साबित कर दिया कमाल अतातुर्क के देश टर्की की जनता ने। जनता चाहे तो राष्ट्राध्यक्ष को सत्ता से उतार फंेक सकती है और यदि चाहे तो अपने राष्ट्राध्यक्ष की सत्ता को बचाने के लिए सेना की तोपों के सामने भी जा खड़ी हो सकती है। दुनिया भर के शासनाध्यक्षों को चाहिए कि वे जनता की इस शक्ति से सबक लेते हुए स्वहित के बजाए जनहित पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखने की आदत डाल लें। चुनावों में जनशक्ति का प्रदर्शन तो होता ही रहता है लेकिन टर्की की जनता ने अपने आप में यह अनूठा उदाहरण सामने रखा है।
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