Tuesday, May 17, 2016

चर्चा प्लस .... बच्चों की तस्करी का घृणित कारोबार - डाॅ. शरद सिंह


मेरा कॉलम 'चर्चा प्लस’ "दैनिक सागर दिनकर" में (10. 05. 2016) .....
 

My Column “ Charcha Plus” in "Dainik Sagar Dinkar" .....

 


चर्चा प्लस ...
बच्चों की तस्करी का घृणित कारोबार 
 - डाॅ. शरद सिंह

इटारसी जंक्शन पर एक मई रात 10:15 बजे प्लेटफार्म नंबर-5 पर रक्सौल-जनसाधारण एक्सप्रेस की 3 बोगियों से इटारसी जंक्शन पर 61 बच्चे बरामद किए गए। इसी ट्रेन से खंडवा में 10 बच्चे और उतारे गए। सभी बच्चे बिहार के हैं। इन बच्चों को बंधुआ बाल मजदूरी कराने नासिक और मुंबई भेजा रहा था। जहां टमाटर की लोडिंग में इन बच्चों को पांच-छह हजार रुपए की मजदूरी पर लगाया जाना था। ये बच्चे 24 घंटे से भूखे-प्यासे सफर कर रहे थे। बरामद हुए ने बताया कि एक दिन पहले शाम को बिहार में ट्रेन पर चढ़ाए गए थे। उन्हें काम कराने ले जाया जा रहा था। चाइल्ड लाइन से मिली सूचना पर इटारसी जंक्शन पर खंडवा और इटारसी की जीआरपी फोर्स, आरपीएफ का डॉग स्क्वाड और चाइल्ड लाइन की टीम ने ट्रेन आते ही बोगियों की सर्चिंग शुरू कर दी थी। 
Charcha Plus Column of Dr Sharad Singh in "Sagar Dinkar" Daily News Paper
नशीली दवाओं और हथियारों के कारोबार के बाद मानव तस्करी विश्व भर में तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है। भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है। यूनाइटेड नेशन्स ने एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मानव तस्करी का बड़ा बाजार बन चुका है और देश की राजधानी दिल्ली मानव तस्करों की पसंदीदा जगह बनती जा रही है, जहां देश भर से बच्चों और महिलाओं को लाकर आसपास के राज्यों के साथ ही विदेशों में भी भेजा जा रहा है। इस रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया कि भारत में वर्ष 2009 से 2011 के बीच लगभग 1,77,660 बच्चे लापता हुए जिनमें से 1,22,190 बच्चों को पता चल सका, जबकि अभी भी 55 हजार से ज्यादा बच्चे लापता हैं जिसमें से 64 प्रतिशत यानी लगभग 35,615 नाबालिग लड़कियां हैं। वहीं इस बीच लगभग 1 लाख 60 हजार महिलाएं लापता हुई जिनमें से सिर्फ 1 लाख 3 हजार महिलाओं का ही पता चल सका। वहीं लगभग 56 हजार महिलाएं अब तक लापता हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। सन् 2011 में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई जिसमें से 11,000 से ज्यादा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल से थे। इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 प्रतिशत मामले ही रिपार्ट किए गए और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है। न्यूयाॅर्क टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के झारखंड राज्य में मानव तस्करी समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। टाइम्स आॅफ इंडिया द्वारा की गई पड़ताल के अनुसार मानव तस्करी के मामले में कर्नाटक भारत में तीसरे नंबर पर है। अन्य दक्षिण भारतीय राज्य भी मानव तस्करी के सक्रिय स्थान हैं। चार दक्षिण भारतीय राज्यों में से प्रत्येक में हर साल ऐसे 300 मामले रिपोर्ट होते हैं। जबकि पश्चिम बंगाल और बिहार में हर साल औसतन ऐसे 100 मामले दर्ज होते हैं। आंकड़ों के अनुसार, मानव तस्करी के आधे से ज्यादा मामले इन्हीं राज्यों से हैं। मध्यप्रदेश भी मानव तस्करों की दृष्टि से बचा नहीं है। मध्यप्रदेश से भी बच्चों के गायब होने की रिपोर्ट लगातार विभिन्न थानों में दजऱ् कराई जाती है।
दरअसल, ग्रामीण अंचल के बच्चों को उनकी पारिवारिक गरीबी का लाभ उठाते हुए, उन्हें नौकरी का लालच दे कर अथवा उनके मां-बाप से उन्हें खरीद कर अवैधानिक रूप से काम कराने एक राज्य से दूसरे राज्य ले जाया जाता है। इस तस्करी के धंधे पर नज़र रख रही पुलिस का मानना है कि वे रेलवे जंक्शन एवं बस अड्डे सबसे अधिक संवेदनशील है जहां कई राज्यों की रेलें अथवा बसें अवागमन करती हैं। ऐसे स्थानों में मानव तस्करों को स्थानीय पुलिस की सीमा से बच निकलने में सुगमता रहती है। इसी दृष्टिकोण से इटारसी जंक्शन को अतिसंवेदनशील जंक्शन माना गया है। कथित रूप से खरीदे गए अथवा काम देने के बहाने ले जाए जाते हैं और उन्हें पटाखे बनाने के कारखानों, माचिस कारखानों, रंगाई, छपाई का काम करने वाली कपड़ा मिलों, ईंट के भट्टों पर काम कराने, घरेलू नौकर के रूप में अथवा भीख मांगने वाले संगठनों के पास बेच दिया जाता है। इन स्थानों में उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता है जबकि उनसे कमर तोड़ काम लिया जाता है। ऐसी कठिन परिस्थितियों में अधिकांश बच्चे बालिग होने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। बच्चों को मुख्य रूप से जिन ग्रामीण क्षेत्रों से कथित रूप से खरीद कर यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी के लिए बेचा जाता है उन क्षेत्रों में मानव तस्कर अकसर ऐजेंट के रूप में काम करते हैं। यह ऐजेंट प्रायः स्थानीय निवासी होता है जिससे बच्चों के माता-पिता को विश्वास में लिया जा सके। ऐजेंट इनके माता पिता को पढ़ाई, बेहतर जिंदगी और पैसों का लालच देते हैंऔर उन्हें बच्चों को अपने साथ भेजने के लिए राजी कर लेते हैं। गांव से बाहर ले जाने के बाद बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय अन्य तस्करों के हाथों पहुंचा दिया जाता है। जहां से उन्हें कार्यस्थलों के लिए बेच दिया जाता है। तस्करी में लाई गई लड़कियों को यौन शोषण के लिए भी बेचा जाता है। ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें लड़कियों को उन क्षेत्रों में शादी के लिए मजबूर किया गया जहां लड़कियों का लिंग अनुपात लड़कों के मुकाबले बहुत कम है।
मानव तस्करों द्वारा बच्चों की तस्करी किए जाने की दर बहुत अधिक है। इस बात से ही इस तथ्य का अनुमान लगाया जा सकता है कि एक सप्ताह के भीतर देश के विभिन्न हिस्सों में बच्चों की तस्करी के तीन बड़े मामले प्रकाश में आए। इसी वर्ष, 23 अप्रैल 2016 दो नाबालिग सहित चार आदिवासी लड़कियों को अवैध रूप से ओडिशा के कंधमाल जिले से तमिलनाडु ले जाते हुए पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया। लड़कियों को घर भेज दिया गया। मानव तस्करों ने कथित तौर पर लड़कियों को एक कताई मिल में काम दिलाने का प्रलोभन दिया था। उनके तमिलनाडु में रहने के दौरान अच्छा पारिश्रमिक और रहने की व्यवस्था का भरोसा दिया था। इसके कुछ ही दिन बाद, 30 अप्रैल 2016 को क्राइम ब्रांच की ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट ने गोरखपुर में मानव तस्करी के एक गिरोह को धरदबोचा। यूनिट ने गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर एक मानव तस्कर को गिरफ्तार कर उसके शिकंजे से 12 साल से कम उम्र के 5 बच्चों को बरामद किया। पकड़े गए तस्कर ने बताया कि वह इन बच्चों को पश्चिमी चंपारण से गुजरात में काम कराने के लिए ले जा रहा था। बरामद किए गए बच्चों ने पुलिस को बताया कि तस्करों ने उन्हें उनके घरों से ही पकड़ लिया था। उनमें से पांच बच्चे एक ही गांव के थे। उन बच्चों को अहमदाबाद में कपड़े का काम करने के लिए ले जा रहे थे। क्राइम ब्रांच की ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट टीम के अनुसार उन बच्चों को जबर्दस्ती ले जाने वालों में से एक उत्तरप्रदेश के देवरिया जिला का रहने वाला था, जो उन लोगों को पश्चिम चंपारण से लेकर आ रहा था। मुखबिर की सूचना पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट टीम ने इन लोगों को गिरफ्तार किया। बचाए गए बच्चे चाइल्ड लाइन को सौंप दिए गए। इसी क्रम में एक मई 2016 को इटारसी और खंडवा का मामला सामने आया। यह दर बच्चों की सुरक्षा और उनके सुखद बचपन की दृष्टि से चिन्ता में डालने वाली है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार एशिया-पेसिफिक क्षेत्र में 11.7 मिलियन से ज्यादा लोग बंधुआ मजदूर के तौर पर कार्य कर रहे हैं। पैसों की तंगी झेल रहे लोग, पैसों के बदले में अक्सर अपने बच्चों को बेच देते हैं। इन मामलों में लड़के और लड़कियां दोनों को बेच दिया जाता है और उन्हें सालों तक भुगतान नहीं किया जाता। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव तस्करी के विरोध में आवाजे़ं भी उठती रहती हैं। वेटिकन सिटी में 9 अप्रैल 2016 को संत फ्रांसिस ने संयुक्त राष्ट्र में स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष बेर्नादितो औजा को आधुनिक युग की गुलामी और मानव तस्करी विषय पर एक पत्र भेजा था जिसमें उन्होंने कहा था कि- ‘‘मैं आप लोगों को सहयोग और संचार के अनुबंध को सुदृढ़ करने का प्रोत्साहन देता हूं जो अनेक स्त्री, पुरूष तथा बच्चों के कष्टों का अंत करने के लिए आवश्यक है जो आज गुलाम बना लिए गये हैं तथा वस्तुओं की तरह बेचे जाते हैं।’’
बच्चे चाहे अमीर के हों या गरीब के हो, बचचे आखिर बच्चे ही होते हैं, निर्दोष और मासूम।वे देश का भविष्य होते हैं। अतः उनकी सुरक्षा कसनून के साथ-साथ प्रत्येक नागरिक का भी कत्र्तव्य होना चाहिए। बच्चों को मानव तस्करों के बचाने के लिए कानून को और अधिक कड़ा करने और नागरिकों को ‘व्हिसिल ब्लोअर’ बनने की आवश्यकता है। यदि इस दिशा में कठोर निर्णय नहीं लिए गए तो देश बच्चों की तस्करी के घृणित कारोबार के कलंक को इसी तरह ढोता रहेगा और हजारों मासूम अपने बचपन को कभी जान ही नहीं पाएंगे।
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